Thursday, May 30, 2013

शशांक की कलाएं
हाँ जी ये शशांक है, पर घटने बढ़ने वाली चाँद की कला से इनका कुछ लेना देना नहीं. ये तो निरंतर बढ़ने वाले शशांक हैं. पिछले ४ अप्रैल को उम्र का पहला पड़ाव पार कर चुके हैं. आइए देखिए इनकी अदाओं को
देखो मेरे दांत अब लीची के छिलके काट सकते हैं 
ये मैं हूँ शशांक, समझे 

लो मेरे दांत भी देख लो 

वाह लीची भी क्या चीज है!

फोटो खीचना है तो खिचिए न!


हूँ............सब कुछ समझ रहा हूँ 

 मैं भी हूँ 

जरा ठीक से फोटो खींचो, बड़ी गर्मी है, बिजली भी नहीं है 

अले देखो ये मेरे बड़े पापा हैं, लोज  (रोज ) क्यों नहीं आते ?

अले पापा जी इतना खुश क्यों हैं 

अच्छा तो ये फिर चले जायेंगे !

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