हाँ जी ये शशांक है, पर घटने बढ़ने वाली चाँद की कला से इनका कुछ लेना देना नहीं. ये तो निरंतर बढ़ने वाले शशांक हैं. पिछले ४ अप्रैल को उम्र का पहला पड़ाव पार कर चुके हैं. आइए देखिए इनकी अदाओं को
देखो मेरे दांत अब लीची के छिलके काट सकते हैं |
ये मैं हूँ शशांक, समझे |
लो मेरे दांत भी देख लो |
वाह लीची भी क्या चीज है! |
फोटो खीचना है तो खिचिए न! |
हूँ............सब कुछ समझ रहा हूँ |
मैं भी हूँ |
जरा ठीक से फोटो खींचो, बड़ी गर्मी है, बिजली भी नहीं है |
अले देखो ये मेरे बड़े पापा हैं, लोज (रोज ) क्यों नहीं आते ? |
अले पापा जी इतना खुश क्यों हैं |
अच्छा तो ये फिर चले जायेंगे ! |
Sundar
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